Dhoop


धुल  और  धुप  के  उजले  गुब्बारों   के  पार  देख  रहा  हूँ ,
चिकने  गुब्बारे ,
गलती  से  छू  जाते  हैं  तो  रूह भी जलने  लगती  है ,
पसीना  भाप  बनके  उड़   जाना  चाहता  है  बस ,
मगर  पारा  रहनुमा  है ,
मौका  नहीं   देता .
गुब्बार्रे  के  उस  पार ,
पानी  की  बूँदें  तलाश  रहा  हूँ ,
प्यास  से  तड़फता  हुआ ,
देख  रहा  हूँ  आँखें  फाड़  फाड़  कर ,
पर  तलाश  अधूरी  रह  जाएगी ,
फलक  तक  सिर्फ  ऐसे  ही  उजले  गुब्बार्रे  दिखते  हैं .
ज़िन्दगी  के  रंग  वाकई  अनोखे  हैं 



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