उम्र की ढलती शाम में, पार्क की ऐसी ही एक ठण्डी बेंच पर, साथ बैठोगी कभी? सालों की मशक्कत जब चेहरे की झुर्रियों में झलकेगी, और पतझड़ की तरह झड़ता जिस्म स्कार्फ़, दस्तानों के बावजूद ठिठुरने लगेगा, हाथ पकड़ोगी मेरा? तुम्हारे साथ ऐसे ही उम्र गुज़ार कर, उम्रदराज़ होने की, छोटी सी ख्वाहिश है.
I did not know that you write in Hindi also and that too so well!
ReplyDeleteBeautiful as always :)
- Akshika